Swar and Vyanjan (स्वर और व्यंजन)
स्वर ( Swar in Hindi )
जिनको बोलते समय किसी की सहायता नहीं ली जाती है या जो अपने आप उच्चरित होते है उसे स्वर कहते है। हिन्दी भाषा में स्वरो की संख्या 11 होती है।
जैसे:- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ
स्वरों का वर्गीकरणः-
- मात्रा के आधार पर 2. ओष्ठ के आधार पर
- मुखाकृति के आधा पर 4. नासिक के आधार पर
- जिहृवा के आधार पर 6. रचना या बनावट के आधार पर
- मात्रा के आधार पर:- मुख्यतः मात्रा के आधार पर स्वर तीन प्रकार के होते है।
swar and vyanjan
अ. ह्नस्व स्वरः– वे स्वर वर्ण जिनको बोलते समय कम से कम समय लगता है उन्हें ह्नस्व स्वर कहते है।
उदाहरणः- अ, इ, द, ऋ
इनकी संख्या 4 होती हैै। इनको मूल स्वर, लघु स्वर, एक मााित्रक स्वर भी कहा जाता है।
ब. दीर्घ स्वरः- वे स्वर वर्ण जिनको बोलते समय ह्नस्व स्वर से थोड़ा ज्यादा समय लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते है।
उदाहरणः- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
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इनकी संख्या 7 होती है। इनको द्विमात्रिक भी कहा जाता हैं।
स. प्लुत स्वरः- वे स्वर वर्ण जिनको उच्चारण करते समय ह्नस्व व दीर्घ स्वर से ज्यादा समय लगता है उन्हंे प्लुत स्वर कहते हैं। इन स्वरों के अन्त में तीन (3) की संख्या सा चिन्ह होता है।
उदाहरण:- मुर्गी की आवाज, कलाकार का अलाप

- ओष्ठ के आधार पर:- ओष्ठ के आधार पर दो प्रकार के स्वर होते है।
अ. वृताकार स्वर
ब. अवृताकार स्वर
अ. वृताकार स्वर:- वे स्वर वर्ण जिनका उच्चारण करते समय होठ (ओष्ठ) गोल आकृति में हो जाते है उन्हें वृताकार कहते है।
उदाहरण:- उ, ऊ, ओ, औ, आॅ (आगत वर्ण)
ब. अवृताकार स्वरः- वे स्वर वर्ण जिनका उच्चारण करते समय होठ गोल न होकर फैल जाते है उन्हें अवृताकार स्वर कहते है।
जैसे – इ, ई, ए, ऐ, ऋ
- मुखाकृति के आधार परः- मुखाकृति के आधार पर स्वरो का वर्गीकरण चार प्रकार से किया जाता है।
अ. संवृत स्वर
ब. अर्द्ध संवृत स्वर
स. विवृत स्वर
द. अर्द्ध विवृत स्वर
अ. संवृत स्वर:-
अर्थ:- बहुत कम खुलना
परिभाषाः- वे स्वर वर्ण जिनका उच्चारण करते समय मुख बहुत कम खुलता है। उन्हें संवृत स्वर कहते हैं।
उदाहरण:- इ, इ्र्र, उ, ऊ, ऋ
ब. अर्द्ध संवृत स्वर:-
अर्थ:- संवृत स्वर से थोड़ा ज्यादा खुलना।
परिभाषाः- वे स्वर वर्ण जिनका उच्चारण करते समय मुख संवृत से थोड़ा ज्यादा खुलता है। उन्हें अर्द्ध संवृत स्वर कहते है।
उदाहरण:- ए , ओ
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स. विवृत स्वर:-
अर्थ:- पूरा खुलना
परिभाषा:- वे स्वर वर्ण जिनका उच्चारण करते समय मुख पुरा खुलता है उन्हें विवृत स्वर कहते है।
उदाहरण:- आ
द. अर्द्ध विवृत स्वर:-
अर्थः- कम खुलना
परिभाषा:- वे स्वर वर्ण जिनका उच्चारण करते समय मुख विवृत से कम खुलता है उन्हें अर्द्धविवृत स्वर कहते हैं।
उदाहरण:- अ, ऐ, औ
- जिह्नवा के आधार पर:- जिह्नवा के आधार पर मुख्यतः स्वर तीन प्रकार के होते है।
अ. अग्र स्वर
ब. मध्य स्वर
स. पश्च स्वर
अ. अग्र स्वर:- वे स्वर वर्ण जिनका उच्चारण जिह्नवा के अग्र भाग से किया जाता है उन्हें अग्र स्वर कहते है।
उदाहरण:- इ, ई, ए, ऐ, ऋ
ब. मध्य स्वर:- वे स्वर वर्ण जिनका उच्चारण जिह्नवा के मध्य भाग से किया जाता है उन्हें मध्य स्वर कहते है।
उदाहरण:- अ
स. पश्च स्वर:- वे स्वर वर्ण जिनका उच्चारण जिह्नवा के पश्च भाग से किया जाता है उन्हें पश्च स्वर कहते है।
जैसे:- आ, ओ, औ, उ, ऊ
- बनावट के आधार पर:- बनावट के आधार पर स्वर दो प्रकार के होते है।
अ. मूल स्वर
ब. संयुक्त स्वर
अ. मूल स्वर:- वे स्वर जिनका निर्माण किसी अन्य वर्णो की सहायता से नही हुआ है। उन्हें मूल स्वर कहते है।
उदाहरण:- अ, इ, उ, ऋ
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ब. संयुक्त स्वर:- वे स्वर जिनका निर्माण दो वर्णो से मिलकर हुआ है उन्हें संयुक्त स्वर कहते है।
क. दीर्घ स्वर:- वे स्वर वर्ण जिनका निर्माण दो वर्णो से हुआ है उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं।
उदाहरण:- अ $ अ = आ
इ $ इ = ई
उ $ उ = ऊ
ऋ $ ऋ = ऋ
नोटः- एक ही जाती के वर्णो से निर्मित होने के कारण इन्हें सजातिय भी कहा जाता है।
ख. संधि स्वर:- वे स्वर वर्ण जिनका निर्माण दो वर्णों के मेल से हुआ है। उन्हें संधि स्वर कहते है।
उदाहरण:-
अ $ इ = ए
अ $ उ = ओ
अ $ ए = ऐ
अ $ ओ = औ
नोट:- अलग-अलग वर्ण से मिलने के कारण इन्हें विजातिय भी कहा जाता है।
संधि स्वरो की संख्या 4 होती है।
- नासिक के आधार पर:- नासिक के आधार पर स्वर दो प्रकार के होते है।
अ. अनुनासिक
ब. निरअनुनासिक
अ. अनुनासिक:- वे स्वर वर्ण जिनका उच्चारण मुख व नाक से होता है। उन्हें अनुनासिक स्वर कहते है।
उदाहरण:- अँ, आँ, इँ, ईं, एँ, ऐं आदि (चन्द्र बिन्दु वाले वर्ण)
ब. निरअनुनासिक:– वे स्वर वर्ण जिनका उच्चारण केवल मुख से होता है। उन्हें निरअनुनासिक स्वर कहते है।
उदाहरण:- सभी स्वर
Swar and Vyanjan (स्वर और व्यंजन)
व्यंजन
वे वर्ण जिनको बोलते समय स्वरो की सहायता ली जाती है। उन्हें व्यंजन कहते है। हिन्दी भाषा में व्यंजनों की संख्या 33 होती है।
व्यंजनो का वर्गीकरण:-
- स्पर्श व्यंजन:- अर्थ – छूना
परिभाषा:- वे वर्ण जिनका उच्चारण करते समय हवा मुख के किसी न किसी भाग को छूकर बाहर निकलती है उसे स्पर्श व्यंजन कहते है। इनकी संख्या 25 होती है।
उदाहरणः- क् से म् तक की ध्वनियां
- अन्तःस्थ:- अर्थ – मध्य में स्थित
परिभाषा:- वे वर्ण जिनका उच्चारण स्वर व व्यंजन स्वर व उच्चारण स्थान के मध्य भाग से होता है। उन्हें अन्तःस्थ व्यजंन कहते है। इनकी संख्या 4 होती है।
उदाहरणः- य् / र / व / ल
- उष्म व्यंजनः- अर्थ – गर्म
परिभाषा:- वे वर्ण जिनका उच्चारण करते समय मुख से गर्म हवा निकलती है। उन्हंे उष्म व्यंजन कहते है। इनकी संख्या 4 होती है।
उदाहरण:- श / ष / स / ह
- संयुक्त व्यंजन:- वे वर्ण जो दो वर्गो से मिलकर बने है उन्हें संयुक्त व्यंजन कहते है। इनकी संख्या 4 होती है।
उदारण:- क्ष = क् $ ष
त्र = त् $ र
ज्ञ = ज् $ ´
श्र = श् $ र
- उत्क्षिप्त / ताड़नजात / द्विगुण / द्विस्पृष्ठ व्यंजन:-
अर्थ – फैका हुआ
परिभाषा:- वे वर्ण जिनका उच्चारण करते समय जिह्नवा तालु के लगकर झटके के साथ निचे आती है। उन्हंे उत्क्षिप्त व्यंजन कहते है।
उदाहरण:- ड़ / ढ़
नोटः- (अ) इसके निचे लगे बिन्दु को नुक्ता कहा जाता जिसका उच्चारण ह् से किया जाता है।
(ब) दत्क्षिप्त व्यंजनों का प्रयोग शब्द के आरम्भ में नहीं करके शब्द के मध्य में किया जाता है।
- प्रकम्पी या लुंठित व्यंजनः-
अर्थ – कम्पन्न / लुडकना
वे वर्ण जिनका उच्चारण करने पर कम्पन्न पैदा होता है। उसे प्रकम्पी व्यंजन कहते है।
उदाहरण:- र
- पार्शिवक / वत्स्र्य (मसूड़ा) व्यंजन:-
अर्थ – बगल से
परिभाषा – वे वर्ण जिनका उच्चारण करने पर हवा बगल से निकल जाती है उन्हें पार्शिवक व्यंजन कहते है।
उदाहरण – ल